वायरस सिद्धांत के साथ बुनियादी समस्याएं क्या हैं?

 


*वायरस सिद्धांत के साथ बुनियादी समस्याएं क्या हैं?*

- पाश्चर का मानना ​​था कि रोगाणु रोग पैदा करते हैं। हालांकि यह पाया गया कि ऐसी बीमारियां थीं जिनके लिए रोगाणुओं को दोष नहीं दिया जा सकता था

-जर्म वायरस सूक्ष्म जीव से बीमारी के सिद्धांत को जीवित रखने के लिए और अधिक सूक्ष्म कणों की खोज करने का निर्णय लिया गया जिन्हें दोष दिया जा सके

- यह दावा किया गया था कि सूक्ष्म कण वास्तव में रोग उतपन्न करने में शामिल थे और उन्हें "वायरस" नाम दिया गया था। विडंबना यह है कि लैटिन शब्द वायरस का भाषान्तर विषाक्त पदार्थ होता है!

- जल्द ही कई बीमारियों को वायरल रोग कहा जाने लगा

- इस प्रक्रिया में कुछ अर्थ निकालने के लिए रॉबर्ट कोच ने कुछ नियम बनाए जिन्हें कोच पोस्टुलेट्स के नाम से जाना जाने लगा

- हालाँकि जल्द ही यह महसूस किया गया कि कोई भी वायरस कोच के अभिधारणाओं को पूरा नहीं करता है! कोच ने खुद इस बात को स्वीकार किया है

- कहा जाता है कि पाश्चर अपनी मृत्यु शय्या पर पछताया,ओर बर्नार्ड के सामने यह स्वीकार किया कि रोगाणु रोग नहीं पैदा करते हैं, बाह्य वातावरण ही महत्वपूर्ण है

- पाश्चर डायरी ने बाद में खुलासा किया कि कैसे उन्होंने रोग के लिए रोगाणुओं को दोष देने के लिए प्रयोगों और आंकड़ों में हेरफेर किया

- वायरस सिद्धांत को आगे बढ़ाने के लिए थॉमस रिवर ने नियमों का एक और सेट तैयार किया जिसे रिवर पोस्टुलेट्स कहा जाता है

- रिवर के अभिधारणाओं को पूरा करने वाला भी कोई वायरस नहीं है

- नियमों को और अधिक कमजोर किया गया लेकिन फिर भी आज तक कोई वैज्ञानिक निश्चितता के साथ यह दावा नहीं कर सकता है कि वायरस बीमारी का कारण बनते हैं

*कुछ अन्य मुद्दे क्या हैं?*

डॉ स्टीफन लेंका ने बताया कि वायरल आइसोलेशन की प्रक्रिया , वायरस कोशिकाओं में प्रवेश करते हैं, फैलते हैं और कोशिका को नष्ट करते हैं, यह अवधारणा में बहोत संदेहास्पद है.

*सिद्धांत यह है;*

-वायरस को शुद्ध और अलग करना संभव नहीं है। इसलिए अल्ट्रा सेंट्रीफ्यूज नामक एक प्रक्रिया का उपयोग किया जाता है और जितना संभव हो उतना करीब जाने की कोशिश की जाती है। हालाँकि इस प्रक्रिया में भी पदार्थ के एक जथ्थे को अलग करना ही सम्भव हो पाता है जिसमें यह मान लिया जाता है कि वायरस मौजूद है

- 1954 में जॉन एंडर्स ने पहली बार खसरे के वायरस को अलग करने के लिए इस तरीके का इस्तेमाल किया था। उनके पेपर में एक वाक्य है जो दिखाता है कि वह खुद कैसे आश्वस्त नहीं थे

- यह साबित करने के लिए कि वायरस बीमारी का कारण बनते हैं, निकाले गए पदार्थ को कुछ रसायनों के साथ मिलाया जाता है और एक पेट्री डिश में डाला जाता है जिसमें वेरो सेल होते हैं जो एक घोल में रखे जाते हैं।

- यह दावा किया जाता है कि सेल के टूट ने के परिणामस्वरूप जो प्रदार्थ उतपन होता है ओर कोशिका नष्ट हो जाती है उसे ही वायरल प्रतिकृति तरह देखा जा रहा है क्योंकि कोशिकाए फट ती है और वायरस फिर कोशिका से बाहर निकल जाते हैं

डॉ. स्टीफन लेंका, जो स्वयं एक वायरोलॉजिस्ट थे, ने इस प्रक्रिया में खामियों की ओर इशारा किया;

- निकाले गए पदार्थ में ऐसे रसायनों का मिश्रण होता है जो कोशिकाओं को नष्ट करने की क्षमता रखते हैं!

- जब शरीर से एक कोशिका निकाली जाती है तो वह अपनी जीवन शक्ति खो देती है। जब इसे ऐसे घोल में रखा जाता है जिसमें पोषण की कमी हो तो यह और कमजोर हो जाता है

- जब कोशिकाओं को नष्ट करने वाले रसायनों के साथ मिश्रित पदार्थ को पेट्री डिश में डाला जाता है तो कोशिका नष्ट हो जाती है और कोशिका के भीतर के वायरस बाहर जाते हैं। यह सबूत के रूप में दिखाया जाता है कि बाहरी वायरस ने कोशिका को नष्ट कर दिया,एक से अनेक वायरस उतपन हुए, और सेल फट गया!

अगर अकेले रसायन, बिना किसी वायरल पदार्थ के, पेट्री डिश में डाल दिए जाते हैं तो कोशिका नष्ट हो जाती है!

तो यही है वायरस सिद्धांत।

*कुछ और मुद्दे हैं;*

- विषाणुओं की जांच केवल इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप सूक्ष्मदर्शी से ही की जा सकती है। वायरस युक्त पदार्थ जैविक है

- इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी के लिए जैविक पदार्थ तैयार करने के लिए एक प्रक्रिया होती है। वह प्रक्रिया जैविक पदार्थ को नष्ट कर देगी

- इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी बहुत अधिक ऊष्मा उत्सर्जित करते हैं। जांच की जा रही जैविक सामग्री गर्मी से नहीं बचेगी

- इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी स्थिर चित्र प्रदान करता है न कि वीडियो। इसलिए यह कहना संभव नहीं है कि प्रतिकृति के बाद कोई वायरस कोशिका में प्रवेश कर रहा है या उसमें से निकल रहा है

इस प्रकार हम देखते हैं कि वायरस सिद्धांत उन धारणाओं से भरा है जिन्हें जरूरत के अनुरूप हेरफेर किया जा सकता है।

*तो डॉक्टरों और वैज्ञानिकों के दिमाग में अभी भी वायरस थ्योरी क्यों है?*

- पहली बात है भ्रामकप्रचार जो चिकित्सा शिक्षा में मौजूद है

- रॉकफेलर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल रिसर्च में भ्रामकप्रचार के तरीकों को अंतिम रूप दिया गया

- डॉक्टर और वैज्ञानिक एक साथ लोगों के बीमार पड़ता देखते हैं और यह वायरस थिओरी में फिट बैठता है जोकि उन्हें सिखाया पढ़ाया जाता है

लेकिन हकीकत क्या है?

- 100 से अधिक शारीरिक चिकित्सा प्रयोग किए गए जहां स्वस्थ लोगों को "वायरल रोगों" से पीड़ित बीमार लोगों के संपर्क में लाया गया, लेकिन कोई भी बीमार नहीं पड़ा। रोगी शरीर के सेम्पल को स्वस्थ लोगों में डाला / इंजेक्ट किया गया और कोई भी बीमार नहीं पड़ा

- इसलिए प्रयोगों ने वायरल सिद्धांत को जूठा साबित किया है

फिर लोग एक साथ बीमार क्यों पड़ते हैं?

- पतझड़ में सभी पेड़ एक साथ अपने पत्ते गिराना शुरू कर देते हैं ताकि वे नए उग सकें। यह पुनर्जन्म का एक रूप है। क्या हम इसके लिए वायरस कारण मानते है ?

- हमने हमेशा मौसमी बीमारियां देखी हैं। जब ऋतुएँ बदलती हैं तो तापमान/विद्युत में सूक्ष्म परिवर्तन होते हैं जो इन रोगों को उत्पन्न करते हैं। शरीर इन तीव्र लक्षणों के माध्यम से विषहरण डिटॉक्सिफिकेसन करता है और यह भी नवजीवन का एक आवश्यक पहलू है

- समान तनाव में रहने वाले लोग समान लक्षण व्यक्त करेंगे। तनाव विभिन्न प्रकार के हो सकते हैं

- आज विश्व स्तर पर लोग एक ही तरह के भोजन का सेवन करते हैं और उसी तरह के प्रदूषण / विषाक्त पदार्थों / वायरलेस तरंगों के संपर्क में आते हैं। इसलिए पर्याप्त कारण हैं कि वे एक साथ बीमार पड़ सकते हैं और एक ही विषहरण लक्षण प्रदर्शित कर सकते हैं

कॉन्टैजीयन चेपी रोग का एक और पहलू है जिसे डॉ थॉमस कोवान ने समझाया है। वह इसे प्रतिध्वनि कहते हैं। हम चुंबकीय और विद्युत क्षेत्र वाली ऊर्जा प्रणालियां हैं। जब हम किसी बीमार व्यक्ति के करीब होते हैं और हमारे शरीर को भी विषहरण की आवश्यकता होती है, तो वह अपनी स्वयं की विषहरण आवश्यकताओं के लिए लक्षणों को ग्रहण कर सकता है।

इस प्रकार ऐसे पर्याप्त उदाहरण हैं जो तार्किक रूप से समझा सकते हैं कि चेपी रोग क्यों होते है। प्रयोगों के साथ यह भी दिखाया गया है कि वायरस जिम्मेदार नहीं हैं।

*एक और पहलू मौजूद है;*

- मानव शरीर में खरबों रोगाणु जीवाणु होते हैं जिनकी शरीर को स्वस्थ रहने में आवश्यकता होती है

- ये रोगजनक अपचय/उपापचय/उन्मूलन तथा अन्य आवश्यकताओं के लिए उत्तरदायी होते हैं

- सेलुलर पुनर्जनन के कारण हमारे शरीर में किसी भी समय क्वाड्रिलियन वायरस होते हैं

- शरीर अपनी गंभीर विषहरण डिटॉक्सिफिकेशन क्रिया की आवश्यकताओं के लिए अपने स्वयं के विषाणुओं का उपयोग करता है; भारी धातुओं और विद्युत से प्रभावित होने पर

- जब उस कार्य में वायरस को एक्सोसोम के रूप में जाना जाता है

- इस प्रकार शरीर को वास्तव में किसी बाहरी वायरस की आवश्यकता नहीं होती है

- इस प्रक्रिया को डॉक्टरों द्वारा अच्छी तरह से समझाया गया है जिन्होंने पाश्चर की गलतियाँ उजागर कीं है.

अंत में रोगाणु और वायरस सिद्धांत को दफनाने और स्वास्थ्य पर अपना ध्यान केंद्रित करने का समय आ गया है।